नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का बड़ा फैसला, अवैध कब्जों को हटाने के लिए अब प्रशासन फ्री हैंड, सालों पुराने मामले में जन आंदोलन के बाद बदली तस्वीर
उज्जैन। शहर के पौराणिक सप्त सागरो मे शामिल गोवर्धन सागर की 36 बीघा भूमि को आखिरकार सरकारी मान लिया गया। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बड़ा फैसला सुनाते हुए इस भूमि को तालाब घोषित कर दिया है। इससे यहां हुए अवैध कब्जे व इसे अतिक्रमण मुक्त करने का रास्ता भी साफ हो गया है। मालूम हो की तालाब की जमीन पर भानुशील गृह निर्माण संस्था का कब्जा था और यहां पर कॉलोनी काट कर 120 भूखंड बेचने की तैयारी की गई थी। लेकिन एनजीटी के इस निर्णय के बाद भूमाफियाओं के मंसूबों पर पानी फिर गया है।
उज्जैन के सात सागरो मे बुधवारिया क्षेत्र मे गोवर्धन सागर है। इस सागर को लेकर जिला प्रशासन ने पूर्व मे जांच करवाई थी जिसमे सामने आया था कि तालाब करीब 36 बीघा जमीन पर स्थापित है और 75 सालो से हो रहे कब्जे के कारण यह घटकर अब मात्र 27 बीघा मे रह गया है। पवित्र सप्तसागर पर भानुशाली गृह निर्माण सोसायटी बनाकर प्लॉट काटने की योजना थी। कई बार जमीन बेचने का खेल भी हुआ और जमीन का बटांकन भी होता रहा। इस जांच रिपोर्ट के बाद शासन ने कब्जे को अवैध घोषित कर दिया है। यह मामला एनजीटी मे सामाजिक कार्यकर्ता बाकिरअली रंगवाला ने पहुंचाया था। कलेक्टर आशीष सिंह ने बताया की एनजीटी ने याचिका पर सुनवाई कर 1281 नंबर खसरे को मूल रूप से तालाब घोषित किया यानी इस पर तालाब की 36 बीघा 18 बिसवा जमीन को सरकारी घोषित कर दिया है। इस फैसले से गोवर्धन सागर की जमीन पर अवैध कब्जे हटाने लिए प्रशासन अब फ्री हैंड है।
तालाब के नाम पर महज 4 बीघा जमीन बची

शहर के सप्त सागरों में से एक गोवर्धन सागर हर दशक में छोटा होता चला गया। 1927 के सरकारी रिकॉर्ड में यह 36 बीघा से ज्यादा जमीन पर फैला था। रिकॉर्ड के मुताबिक तालाब की पूरी जमीन सरकारी थी लेकिन इसके कुछ साल बाद सरकारी रिकॉर्ड मे जमीन मालिको के नाम जुड़ते चले गए। मौजूदा रिकॉर्ड के मुताबिक अब तालाब के नाम पर मात्र 4 बीघा जमीन है, यानी आसपास की बाकी जमीन पर दूसरे लोग अपना हक जता रहे थे।
ऐसे निजी होती गई तलाब की जमीन
– सामाजिक कार्यकर्ता बाकिरअली रंगवाला ने बताया की गोवर्धन सागर की जमीन का सर्वे नंबर 1281 जांच रिपोर्ट मे माना है।
– इसका 1927-28 से रिकार्ड है। इस रिकार्ड में यह जमीन गोवर्धन सागर तालाब की दर्ज है। सरकारी है। इसका रकबा 36 बीघा 18 बिस्वा दर्ज है।
– 1950-51 मे यह सर्वे नंबर चार भागों में बंट गया तथा कॉलम 3 में पट्टी रामरतन के भूमि स्वामीत्व पर दर्ज पाई। तालाब की प्रविष्टि 1281/1 पर दर्ज पाया। इसी साल 1281/1 पर मुन्नालाल का नाम कृषक के दर्ज पर दर्ज है।
– 1963-64 में जमीन पर भूमिस्वामीत्व पर मन्नुलाल का नाम दर्ज है व तालाब की रकबा 27 बीघा व 10 बिस्वा होकर शेष भाग में कृषि व आबादी दर्ज है। सर्वे 1281 का कुछ भाग सरकारी सड़क, पीएचई व हनुमान मंदिर के नाम पर दर्ज पाया। यह प्रविष्टियां 1970-71 तक रही। इसी साल मन्नुलाल के वारिसान का नाम दर्ज हुआ। तालाब, कृषि व आबादी भी दर्ज है।
– 1983-84 मे तालाब की जमीन सर्वे क्रमांक 1281/1/1 क रकबा 0.964 मनमोहन तथा उक्त रकबे में 0.045 हेक्टेयर पर अशोक कुमार व आशा देवी व शेष रकबा पड़त भूमि दशार्या।
– 1983-84 मे 1281 के विभिन्न भागो मे ईश्वरदास, लक्ष्मणदास, गोवर्धनलाल, ईश्वरलाल, मन्नुलाल के नाम दर्ज हैं। पड़त भूमि और सिंघाड़ा फसल भी दर्ज है।
– 1988-89 में सर्वे 1281 बटे 1, बटे 1 क रकबा 0.920 हेक्टेयर यानी 3.50 बीघा पर सिर्फ गोवर्धन सागर तालाब दर्ज है। इसी साल सर्वे 1281/1/1 ख से छ तक की जमीन भानुशाली गृह निर्माण सहकारी समिति को विक्रय पत्रों के माध्यम से हस्तांतरित की। बाद के सालों में यह जमीन संस्था ने बेची। इस साल के रिकार्ड में खसरे के कालम 10 मे संपूर्ण रकबा तालाब की मद में दर्ज है।
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