प्रयागराज।संन्यास का अर्थ – कामनाओं के सम्यक न्यास से है। अतः संन्यासी होना अर्थात् अग्नि, वायु, जल और प्रकाश हो जाना है। संन्यासी के जीवन का प्रत्येक क्षण परमार्थ को समर्पित होता है।
भारत की वैदिक सनातनी संस्कृति और उसकी सांस्कृतिक विरासत की दिव्य अभिव्यक्ति “महाकुम्भ प्रयागराज – 2025 के अन्तर्गत जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामण्डलेश्वर अनन्तश्री विभूषित पूज्यपाद श्री स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज द्वारा सनातन हिन्दू धर्म संस्कृति के प्रचार-प्रसार एवं संवर्धन हेतु मध्य रात्रि में श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के नागा-संन्यासियों को बड़ी संख्या में “संन्यास दीक्षा” प्रदान की गई।
इस दौरान जूना अखाड़ा छावनी में जूना अखाड़ा के सभापति श्रीमहंत प्रेम गिरि जी महाराज, कुंभ मेला प्रभारी श्रीमहंत मोहन भारती महाराज सचिव श्रीमहंत माहेश पूरी महाराज श्रीमहंत निरंजन भारती महाराज,अस्तकोषल महंत डॉ योगानंद गिरी महाराज,सचिव श्री महंत शैलेन्द्र गिरी महाराज,विद्यानन्द गिरी महाराज,रामेस्वर गिरी महाराज सहित कई पदाधिकारी मौजूद थे।
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