April 16, 2025


उज्जैन के स्वयंभू साधुओं ने संत डाॅ. अवधेशपुरी का बहिष्कार करने का बेतुका निर्णय लिया, संतो के बीच अपनी राजनीति चमकाना चाह रहे है महंत विनीतगिरि

डॉ. राहुल कटारिया/उज्जैन। यदि जनहित व सनातन धर्म रक्षा के मुद्दें उठाना अपराध है तो फिर हर संत को इस तरह का अपराध जरुर करना चाहिए। फिर इसके लिए उन्हें किसी के बहिष्कार का शिकार होना पडे या और कुछ नुकसान झेलना पड़े। शहर के एक क्रांतिकारी संत डाॅ. अवधेशपुरी महाराज ने कुछ ऐसा ही अपराध किया है जो शहर के कतिपय संतों को रास नहीं आया और उन्होंने स्वार्थपूर्ति के चलते उनका बहिष्कार करने का निर्णय ले लिया। इस कथित बहिष्कार के बाद बडा सवाल यहीं है की इसकी आड में कौन संतो के बीच अपनी राजनीति चमकाना चाहता है। पढ़िए *पब्लिक न्यूज़ 24* की खास रिपोर्ट।
अब आपको बताते है की आखिर ऐसा हुआ क्या है..?? दरअसल शुक्रवार को महानिर्वाणी अखाडे के महंत विनितगिरी की अध्यक्षता में हुई महाकाल मंदिर स्थित उनके महंत कक्ष में हुई बैठक में शहर के क्रांतिकारी संत डाॅ. अवधेशपुरी महाराज के बहिष्कार का निर्णय लिया गया। बैठक मे मठ मंदिर, शिप्रा शुद्धीकरण आंदोलन सहित अन्य मुद्दें भी शामिल थे। लेकिन बाद में मीडिया को दिए बयान में प्रमुख संतों ने केवल बहिष्कार के मुद्दें को ही हवा दी। क्योंकि बैठक का मुख्य उद्देश्य भी यहीं था। लेकिन अब सवाल यहीं है की जो संत हमेशा सनातन धर्म रक्षा, संत समाज हित व देश प्रेम के लिए आवाज उठाएं उससे संत समाज की क्यों आहत है। बगैर किसी अपराध के एक सुलझे, स्वच्छ छवि वाले संत पर निजी स्वार्थपूर्ति व कतिपय अधिकारियों के ईशारे पर इस तरह का निर्णय करवाना उन संतों को शोभा देता है। तो हर किसी का जवाब होगा बिल्कुल नहीं। लेकिन महाकाल की नगरी में ये कुठाराघात उन्हीं के परिसर में हुआ है। आखिर ये राजा विक्रमादित्य की नगरी है जो न्यायप्रियता के लिए विश्व विख्यात है। लेकिन यह भी अटल है की सत्य परेशां जरुर हो सकता है लेकिन पराजित कदापि नहीं।
अपनी राजनीति चमकाने के जतन में विनितगिरी
महानिर्वाणी अखाडे में कुछ समय पहले महंत बने विनितगिरी शहर के संतो के बीच अपनी राजनीति चमकाना चाहते है। इसमें उनका साथ देते है षडदर्शन संत मंडल के महंत रामेश्वर दास, जो गृहस्थी संत है। इन्होंने काकस बनाकर अन्य संतों को एकत्रित कर एक स्वच्छ छवि के सन्यासी के बहिष्कार का मनमाना निर्णय करवा दिया। बैठक किन्हीं अन्य विषयों को लेकर बुलाई गई और एन वक्त पर बहिष्कार संबंधी मुद्दा भी उसमें रखकर पास करा लिया। षामिल भोले-भाले संतों ने भी माहौल देखकर हामी भर दी और हस्ताक्षर कर दिए।
ऐसे है क्रांतिकारी संत, दर्जनों उपलब्धियों से भरे
क्रांतिकारी संत अवधेशपुरी यू तो किसी परिचय के मोहताज नहीं, लेकिन आज जब उनके स्वाभिमान से जुडी है तो उनके अब तक के कार्यो व उपलब्धियों की चर्चा भी जरुरी है। दबंग हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के साथ वे रामचरित मानस के मार्मिक प्रसंगों पर विक्रम विवि से पीएचडी उपाधि प्राप्त है। मठ मंदिर सुरक्षा व अधिग्रहण का मुद्दा हो या हिंदूत्व रक्षा की बात हमेषा वो मुखर रहते है। महाकालेश्वर मंदिर में बिगडी व्यवस्था को लेकर तो हमेशा से ही प्रशासन को आडे हाथों लेते है। यहीं नहीं उज्जैन से दिल्ली तक संत समाज व सनातन हित के मामलों को वे खुले मंच से उठाते है। हाल ही में मंदिर की खुदाई में निकलने अवषेशों व मूर्तियों को सहेजने उन्होंने कई प्रयास किए। जिसके चलते प्रशासन ने पुराअवषेशों को सहेजा भी।

महंत विनीत गिरी के साथ बैठक में मौजूद विभिन्न संत गण।
क्रांतिकारी संत डॉ. अवधेश पुरी महाराज
  • विवि के दीक्षांत समारोह में अंग्रेजों की गुलामी के प्रतिक ब्लैक गाउन परंपरा को देष में उन्होंने ही खत्म कराया। खुद की पीएचडी शोध उपाधि दौरान उन्होंने कहां की मैं गाउन नहीं पहनूंगा। ये मुद्दा देषभर में उठा ओर फिर राजभवन से तय हुआ की गाउन की जगह पारंपरिक भारतीय वेशभूशा तय हो। आज देशभर के विवि में यह व्यवस्था लागू हुई
  • हाल ही में आईआरसीटीसी ने रामायण सर्किट एक्सप्रेस ट्रेन में वेटरो के लिए संत जेसी वेशभूशा निर्धारित कर दी थीं। यह प्रकाश में आते ही अवधेशपुरी महाराज ने विरोध किया और रेल मंत्री को पत्र लिखा। जैसे ही यह मामला उछला रेलवे प्रशासन ने गलती स्वीकारते हुए वेटरो की वेशभूषा बदली और खेद जताया।
  • यदि महाकाल-काशी मंदिर सरकारी तो मस्जिदें व अजमेर शरीफ क्यों नहीं——दिल्ली के जंतर मंतर में आयोजित मठ मंदिरों पर नियंत्रण रखने वाले विधेयक के विरोध में इसी संत ने यह सवाल उठाया था। केंद्र सरकार के इस तरह के प्रयास पर उन्होंने कहां की सरकारी अधिग्रहण केवल मंदिर व मठों का क्यों, मस्जिद, गिरिजाघर को भी सरकार नियंत्रण में ले। एक देश व संविधान में दो कानून क्यों।
  • इसके अलावा उज्जैन व मप्र में संत समाज, धर्म व जनहित से जुडे दर्जनों मुद्दों पर वे मुखर रहकर बेबाक राय रखते है। शायद इसी कारण वे कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को भी खटकते है। और यहीं वजह है की उनकी प्रसिद्धी व बेबाकी से अन्य कई स्थानीय संत कुंठित रहते है। यहीं कुंठा उनके मनमाने बहिष्कार का कारण बनी।
    बहिष्कार के पीछे महंत का ये मनमाना तर्क
    बैठक के बाद महंत विनितगिरी ने मीडिया से कहां की अवधेशपुरी किसी अखाडा परंपरा नहीं जुडे और कहां की साधुओं में उनको लेकर काफी रोष था। पूर्व मे महंत प्रकाशपुरी जी महाराज भी उनका बहिष्कार कर चुके है। साधु समाज को बदनाम करने के चलते उन्हें साधु समाज से अलग किया है। अब सवाल यहीं है की आखिर अवधेशपुरी महाराज ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया, जिससे संत समाज का आचरण व छवि बिगड गई हो।
    आखिरी सांस तक लडूंगा, दबाव में नहीं किसी
    मैं सन्यासी हूं और मैनें सन्यास ही इसलिए लिया है की सनातन धर्म व इसको मानने वालों के लिए कुछ कर सकूं। मैं अभी बाहर है कुछ मीडिया बंधुओं से जानकारी लगी की मुझे लेकर स्थानीय संतों ने कुछ बैठक कर बहिष्कार की बात कहीं। मैं आखिरी सांस तक धर्म, संत रक्षा व सच्चाई वाले मुद्दों को उठाता रहूंगा। जो मनमाने निर्णय कर रहे है वे किसी के दबाव में होंगे, लेकिन मैं किसी के दबाव में आने वाला नहीं। जो कतिपय गृहस्थी संत ये षडयंत्र कर रहे है, वे पहले खुद के गिरेबां में झांके। इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं कहना।
    डाॅ. अवधेशपुरी महाराज, क्रांतिकारी संत, स्वास्तिक पीठ, उज्जैन